Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 88

वर वधू का गृह प्रवेश होने के पश्चात अनेक रस्में की जाने लगीं । एक रस्म "कंकण डोरा" भी होती है । यह रस्म वधू के यहां भी होती है और विवाह के पश्चात कुछ जगह वर पक्ष के यहां भी होती है । अशोक सुन्दरी "कंकण डोरा" की रस्म की तैयारी करने लगी । इस रस्म के समय केवल महिलाऐं ही उपस्थित रहती हैं । पुरुषों की उपस्थिति वधू को संकोची बना देती है इसलिए पुरुषों का प्रवेश निषेध कर दिया जाता है ।

समस्त महिलाऐं अपनी अपनी जगह बैठकर गीत , बन्ना, बन्नी गा रही थीं । सोने की एक छोटी सी कड़ाही मंगवाई गई जिसके चारों ओर हीरे मोती जड़े हुए थे । उसमें थोड़ा सा गंगाजल डाला गया । उसके पश्चात अन्य समस्त नदियों का जल डालकर उसे आधा भर दिया गया । उस जल को हल्दी, चंदन , रोली , अक्षत आदि से पूजित किया गया । कड़ाही के मौली बांधी गई । वर वधू को जोड़े से बैठाया गया । वर की चाची , बुआ , मौसी "कंकण डोरा" रस्म कराने लगीं ।

देवयानी मुस्कुरा कर सबको देखने लगी । अधिकांश स्त्रियां उसके पक्ष में थी । आखिर नारी जाति का स्वाभिमान भी तो रखना था ना ! बतकही आरंभ हो गई । "देख लेना , हमारी देवयानी ही जीतेगी" । एक औरत हाथ नचाकर बोली "कोई नहीं , हमारे सम्राट से कोई जीत सका है क्या आज तक" ? बुआ ने अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर दिया । चाहे जो भी वधू के पक्ष में हो जाये किन्तु बुआ सदैव वर के पक्ष में ही खड़ी नजर आयेगी । "पहले की बात मत करो बुआ । वो जमाना सम्राट का था । लेकिन अब हवाऐं "भाभी" की ओर बह रही है" । ययाति की रिश्ते की एक युवती ने हंसते हुए कहा । "ययाति चट्टान है चट्टान ! वह तूफानों में भी अडिग रहता है । देख लेना , कैसे एक मिनट में समाप्त करता है वह यह खेल" ! बुआ आत्मविश्वास से भरी नजर आ रही थी । "सौन्दर्य के सामने हमने चट्टानों को भी पिघलते देखा है बुआजी । फूफाजी आपके सामने कैसे भीगी बिल्ली बनकर आपके आगे पीछे घूमते रहते हैं । क्यों है ना" ? छोटी तूलिका ने बड़े भोलेपन से कहा । "मैं तुझे अभी बताती हूं कि तेरी बुआ क्या कर सकती है" ? यह कहकर बुआ तूलिका के पीछे दौड़ने लगी । बुआ का शरीर थोड़ा भारी हो गया था । शादी के बाद लड़कियां सामान्यत: मोटी हो जाती हैं जो उनकी खुशहाली का प्रतीक है । ससुराल में वजन बढने का एक ही आशय है कि वधू ससुराल में आनंद पूर्वक रह रही है । और क्या चाहिए किसी को ? फिर भी ससुराल की सदैव बुराई ! यह कुछ ज्यादा नहीं है क्या " ?

वर वधू के द्वारा एक दूसरे की कलाई से कंकण डोरा खोलने को कहा गया । पहले देवयानी को कहा । देवयानी ने झटपट एक हाथ से ययाति का कंकण डोरा खोल दिया । पूरा सभागार तालियों की आवाज से गूंज उठा । देवयानी ने अपनी विद्वता, बुद्धि और कुशलता का प्रमाण दे दिया था । अब ययाति की बारी थी । ययाति की सदाशयता इतनी थी कि उसने पंडित जी से कहकर गांठें भी बहुत हलकी हलकी लगवाईं थीं जिससे देवयानी को खोलने में कोई समस्या उत्पन्न नहीं हो । इसी का असर था कि देवयानी एक हाथ से ही वे गांठें फटाफट खोलती चली गई ।

देवयानी की स्थिति बिल्कुल विपरीत थी । उसकी सहेलियों ने कस कसकर गांठें लगाई थी और बहुत से पौधों का रस लगाकर उन्हें ऐसा पक्का बना दिया था कि उन्हें कोई खोल ही नहीं पाये । देवयानी ने तब हलका प्रतिरोध भी किया था मगर उसकी सहेलियां उसके द्वारा बरती जाने वाली नरमी पर बिफर पड़ीं और कहने लगीं "विवाह से पूर्व ही कितना ध्यान रख रही हैं महारानी जी , विवाह के पश्चात तो न जाने क्या करेंगी ? अब तेरा क्या होगा देवयानी" ? सारी सखियां बहुत जोर से हंस पड़ी थीं । बेचारी देवयानी अपना सा मुंह लेकर बैठ गई थी । अब उसे याद आ रहा था वह सब मंजर । सम्राट यदि सौ जन्म भी ले लें तो भी इन गांठों को एक हाथ से तो क्या दोनों हाथों से भी नहीं खोल पाऐंगे ।

और वही हुआ जिसका डर था । सम्राट युद्ध विद्या में चाहे जितने निपुण हों , इस विद्या में निरे अज्ञानी निकले । उनकी सहायता करने सारी औरतें आ गईं । देवयानी ने सम्राट की ओर देखा और सम्राट ने देवयानी की ओर । सम्राट ने आंखों ही आंखों में कहा "मेरा व्यक्तित्व मेरे जैसा सीधा है वैसे ही मेरी गांठें भी सरल थीं किन्तु तुम्हारी गांठें तो बहुत जटिल निकलीं , व्यक्तित्व का पता नहीं कैसा है तुम्हारा" ? देवयानी ने शरारत से एक मुठ्ठी मुस्कान बिखेर दी । ययाति उस मुस्कान पर मर मिट गया । उसकी समस्त शिकायतें छूमंतर हो गईं । वर पक्ष की औरतें कहने लगीं "बड़ी गजब की गांठें लगाईं हैं किसी ने । जिसने भी ऐसी गांठें लगाईं हैं उसका व्यक्तित्व भी कितना जटिल होगा" ? उसकी इस बात पर सब लोग हंस पड़े ।

वर वधू के कंकण डोरा खुलने के पश्चात उन्हें कड़ाही में डाल दिया गया और एक रत्न जटित अंगूठी भी डाल दी गई । अब असली खेल प्रारंभ होने को था । दर्शकों में दो गुट बन गये । एक गुट ययाति के पक्ष में हूटिंग करने लगा तो दूसरा देवयानी के पक्ष में । मामला बहुत करीबी हो रहा था । सबको बड़ा आनंद आ रहा था । छोटी , बड़ी , बूढी सभी औरतें गालों ही गालों में हंस रही थीं । वैसे भी यह सत्य है कि जहां महिलाऐं हंसती हैं , रस वहीं बरसता है । जहां महिलाओं का दम घुटता है उस घर का वातावरण दम घोंटू हो जाता है । महिलाओं की हंसी में जीवन है और उनके आंसुओं में घुटन है । पता नहीं फिर भी लोग महिलाओं पर न जाने क्यों इतनी क्रूरता करते हैं ?

ययाति की बुआ "कंकण डोरा" खिलाने लगी । कड़ाही का जल हल्दी, चंदन , रोली आदि से लाल पीला हो गया था । जल के अंदर हाथ की स्थिति दिखाई नहीं पड़ती थी कि वह किधर है ? इससे खेल खिलाने वाले को थोड़ी सुविधा हो जाती है अन्यथा वह जिधर चाहे उधर अंगूठी डाल सकता है । इस बार ययाति चौकन्ना होकर बैठा था । अबकी बार उसे हर हाल में जीतना था । इसलिए उसने अपनी सारी शक्ति इस खेल में लगा दी थी । बुआ ने पहली चाल चली और अंगूठी बिल्कुल बीचोंबीच में डाली । ययाति ने चीते की सी फुर्ती से वह अंगूठी बीच में ही लपक ली थी । ययाति के खेमे में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई जैसे शवों में प्राण आ गये हों । इस खेमें में उत्साह का संचार हो गया और देवयानी के खेमे में मायूसी छा गई । वे लोग बुआ पर पक्षपात करने का आरोप लगाने लगे । माहौल में गर्मी छा गई । रेफरी बदलने की मांग जोर पकड़ने लगी । मौके की नजाकत देखकर अशोक सुन्दरी ने कमान संभाल ली । सब लोग सांस रोककर खेल देखने लगे । अशोक सुन्दरी ने जानबूझकर अंगूठी देवयानी के हाथ के ऊपर डाली लेकिन ययाति ने उसे भी जबरन ले लिया । खूब वाद विवाद हुआ लेकिन 'झगड़ा झूठा और कब्जा सच्चा' वाली कहावत के आधार पर ययाति के पक्ष में निर्णय सुनाना पड़ा । अब तीसरी और अंतिम प्रयास था । देवयानी को अपनी इज्ज़त बचानी थी और ययाति को क्लीन स्वीप करना था । ययाति घात लगाकर बैठे हुए सिंह की तरह लग रहा था । अबकी बार तो राजमाता ने स्वयं ही अंगूठी देवयानी के हाथ में रख दी । ययाति ने अपनी मां के चरण पकड़ लिये और हाथ जोड़ दिये । 2-1 से ययाति को विजयी घोषित कर दिया गया । इस प्रकार ऐसी अनेक रस्में संपन्न हुईं ।

श्री हरि 2.9.23

   21
5 Comments

madhura

05-Sep-2023 01:32 PM

Nice

Reply

KALPANA SINHA

05-Sep-2023 11:34 AM

Very nice

Reply

Punam verma

03-Sep-2023 09:12 AM

Very nice

Reply